खा गये हैं सब बेच कर ज़मीर को।
बिकता नहीं कहीं जो वोह ईमान कहाँ है।
मंदिर मस्जिद हर जगह दीखते हैं मुझे।
कोई वोह जगह बताये मिलता भगभान जहाँ है।
रास नहीं आई मुझे मतलब की ये दुनिया।
कोई तोह बतायेे कि ये शमशान कहाँ है।
लूट लेते हैं सब कुर्सी पे बैठ कर।
जो देश की खातिर मिट जाए वोह अरमान कहाँ हैं।
बहुत मिलते हैं लोग मुझे चलते फिरते यहाँ।
बस कोई इतना बता दे मिलते ईनसान कहाँ हैं।
नफ़रतें ही देखी यहाँ हर दिल में मैंने।
जहाँ सब मिलजुल कर रहते थे वोह हिन्दुस्तान कहाँ है।