Sunday, September 11, 2016

भगत सिंह

ओस वेल्ले लड़ना केड़ा सौखा सी।
निक्की उमरे मरना केड़ा सौखा सी।
भरी जवानी बिच ही जा के लड़ गया सी।
घर देयाँ नू रौंदा छड सूली चढ़ गया सी।

हवावां दा रुख भी ओहने मोड़ेया होणा।
कच्च दे नाल पथरां नू भी तोड़ेया होणा।
पूरा देश ओस दिन रोया होणा।
भारत माँ ने जद अपणे लाडले नू खोया होणा।

खौरे ओहदे ते की चढ़ी खुमारी सी।
लखां उते ओह कल्ला ही भारी सी।
अपनेया ने ही किती ओदों गद्दारी सी।
गौरेयां दे नाल ला ली ठगां यारी सी।

जदों हंस के आखिर नू सूली चड़ेया होणा।
कईयाँ दा अरमान नाल ही मरेया होणा।
यम भी हाथ लाण तों डरेया होणा।
खोरे ओहना ने ऐना होंसला किथों करेया होणा।

मजबूर गरीबाँ दा हाथ फड़दा क्यों नहीँ।
बुराईयाँ दे नाल हुण लड़दा क्यों नहीँ।
किथे डुब गया कुज करदा क्यों नहीँ।
भगत सिंह बरगा सूरज हुण चड़दा क्यों नहीँ।

पैसा

पैसा है अपना रंग तोह दिखायेगा ही।

ज़िन्दगी की राहों पे बेहका देता है।
ना चाहते भी गलतियां करवा देता है।
भीड़ में भी इक दिन दौड़ायेगा ही।
पैसा है अपना रंग तोह दिखायेगा ही।

अपनों को अपनों से लड़ा देता है।
दोस्तों से दुश्मन बना देता है।
माँ बाप को ठोकर मरवा देता है।
भाइयों को भाइयों से लड़वायेगा ही।
पैसा है अपना रंग तोह दिखायेगा ही।

बुराईयों की राह पे चलना ये सिखाये।
गलत आदतों को पलना ये सिखाये।
पल पल में ये हमको बहकाये।
गुरुर में इक दिन डुबायेगा ही।
पैसा है अपना रंग तोह दिखायेगा ही।

मज़बूरियों में गलत राहों पर चला देता है।
चोरी डकैती जैसे काम करवा देता है।
अपनों को दो निबाले खिलाने की खातिर।
सड़कों पर भीख तक मंगवाएगा ही।
पैसा है अपना रंग तोह दिखायेगा ही।

बेटियाँ

फूलों की तरह खिलखिलाती हैं।
खुशबू की तरह मेहकाती हैं।
परियों का रूप लेकर आती हैं।
सबकी किस्मत में नहीं होती,
किसी किसी घर को ही रोशनाती हैं बेटियां।

दुखों में साथ कभी न ये छोड़ती।
अपनों से कभी मुंह नहीं मोड़ती।
अकेले में बैठ कर चाहे घंटों रो लें।
सामने हर दुःख हंस के जर लेती हैं बेटियां।

न चाहते हुए भी चुप रहती हैं।
अपनों की जुदाई हंस कर सहती हैं।
कोई दाग ना आये बाप की पगड़ी पर,
बस चुपचाप पराये घर की और चल देती हैं बेटियां।

दूर जब जाना है, तोह रोना ही है।
दस्तूर है दुनिया का, ऐसा होना ही है।
खुद चाहे कितने भी बुरे हालातों से गुजरें,
मुसीबत में माँ बाप का साथ निभा जाती हैँ बेटियां।

बुढ़ापे में आकर ये सहारा बन जाएँ।
अपने हाथों से खाना ये खिलाएं।
बेटे चाहे ठोकर भी मार दें।
अपना फ़र्ज़ निभा जाती हैँ बेटियां।

Thursday, September 8, 2016

शायरी 4

खुद गिर गिर कर मुझे चलना सिखाया है।।
फिसलूं जो कभी तोह सम्भलना सिखाया है।।
बहुत हुनर वाला बनाया है मुझे मेरे पापा ने।।
कैसे भी हालात हों मुझे पलना सिखाया है।।

फिसलते देखे मैंने आज वोह चेहरों के नूर पर।।
वोह जो कल तक बात समझदारियों की करते थे।।

खामोश सी है इक अरसे से मेरी कलम।।
ज़िन्दगी बस इतने ही दर्द दिए थे क्या मुझे।।

आगोश में अपनी कोई समेटता ही नहीँ।।
कुछ इस तरह से वक़्त ने बिखेरा है मुझे।।

नसीबों के किस्से अब कैसे ब्यान करूँ।।
वोह उसको भी टटोलता है जो तुम फेंक आते हो।।

ज़िन्दगी में आये हो तोह थोड़ा अदब से चलना ऐ दोस्त।।
यहाँ कदम कदम पर सौदागर मिलेंगे खरीदने को तुमको।।

कमाल के ब्यापारी मिले ज़िन्दगी तेरे सफर में।।
कोई खुद को बेचता है तोह कोई बिक जाता है यहाँ।।

सब कहने की बातें हैं जनाब कि मेहनतें रंग लाती हैं।।
वोह धूप में उगाता है फिर भी गरीब है।।
और वोह ac में बेच कर भी अमीर हो गए।।

सीखा है मैंने।।

वोह भूखे को रोटी।।
वोह बेघर को घर।।
वोह कड़कती ठंड में कपड़ा।।
वोह तपती धूप में छाया।।
और वोह गरीबी में माया।।
ना जाने कितनी दुआएं मांगी हैं मैंने।।

वोह खिलखिलाते फूल।।
वोह लहलहाते खेत।।
वोह नाचते मोर।।
वोह गाती हुयी कोयलें।।
वोह टिमटिमाते हुए तारे।।
और बारिशों के नजारे।।
ना जाने कितनी फिजायें देखी हैं मैंने।।

वोह गरजते बादल।।
वोह बहती हुयी नदियाँ।।
वोह कलकलाते झरने।।
वोह अचल अडिग पहाड़।।
वोह घने बृक्ष और जाड़।।
और वोह ठंडी हवाएं महसूस की हैं मैंने।।

अपनों से दूर जाना।।
वोह रूठते को मनाना।।
तनहाइयों में रोना।।
रात रात भर ना सोना।।
वोह आसमान को निहारना।।
खावों में तुझको पुकारना।।
और ना जाने कितनी सजाएं पायी हैं मैंने।।

दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

बड़ा लगदा है छैल तेरा हसना।।
गल दिले आली लगा तिज्जो दसना।।
मिंजो लगदी तू बाँकी बड़ी गोरिये।।
दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

तँग काला सूट जालु भी पाँदी तू।।
जान कडी लैंदी लके मटकांदी तू।।
कियाँ दसां तिज्जो मेरी कमजोरिये।।
दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

हाल दिले आला कियाँ तिज्जो दसां हुण।।
कल्ला बेयी तिज्जो याद करी हसां हुण।।
तार दिले आले कियाँ भला जोड़िये।।
दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

तेरी याद मिंजो हर पल आंदी हुण।।
तू राती सुपनेयाँ च आयी करी सतान्दी हुण
दिल कियाँ तेरे दिल कन्ने जोड़िये।।
कुछ तां दस हुण मेरी कमजोरिये।।
दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

तिज्जो अपनी बनाना हुण चांदा मैं।।
तेरे कन्ने उम्र बिताना हुण चांदा मैं।।
मेरे मापेयां जो बनायी लै तू अपने सोरिये।।
दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

© चन्द्र शेखर मनकोटिया

Friday, August 19, 2016

शायरी 3

कमाल के हैं इंसान यहाँ दुनिया में।।
जिस पेड़ की छाँव में बैठ जाता था धूप में थक कर।।
उसी पेड़ को आज जलाता है तपने के लिए।।

मुझको आज भी वोही पसन्द है।।
बस उसका ही नज़रिया बदल गया।।

वक़्त के साथ हालात तोह बदल गए।।
एक मैं नहीँ बदला एक मेरी पसन्द नहीँ बदली।।

यूँ ना सताया कर तू बात बात पर ऐ ज़िन्दगी।।
मैं जो रूठा तोह फिर ना मानूँगा कभी।।

टूट जाना तोह मुक्कदर था उस शाख का।।
आँधियाँ तोह महज एक जरिया बन गयीं।।

छोड़ क्या बात करनी इंसानियत की ऐ दोस्त।।
यहाँ मजहबों के हिसाब से नज़रिये बदल जाते हैं।।

पतझड़ों में तोह आखिर टूटना ही था।।
जो आंधियों में बिखरा तोह बुरा क्यों मानू।।

अक्सर टूट जाते हैं वोह लोग।।
जो दूसरों को बिखरने नहीँ देते।।

उम्मीद है नई रुत आएगी बहारों के साथ।।
वैसे तोह समा ये भी हसीन है।।

हमेशा तोह नहीँ रहते बगानों में फूल।।
जो पतझड़ आये तोह साथ चलना मेरे।।

घटा बनकर कभी तोह छाओ रे बदरा।।
कहीं से उम्मीद कोई जगाओ रे बदरा।।
पूरे जहाँ की नफ़रतें मिट जाएं जिस से,
प्यार की ऐसी बूंदें बरसाओ रे बदरा।।

शायद कबूल तोह हो जाती मेरी भी दुआएं।।
बस टूटते तारों को देख कर कुछ माँगा ही ना गया।।

बेहक जाता हूँ ज़िन्दगी की राहों में बार बार।।
उम्र बीत गयी पर जीने के सलीके नहीँ आये।।

दिलों से पेहचान हो सबकी तब बात बने।।
रंग तोह अक्सर बदल लेते हैं लोग।।

अपना बनाने में उम्र लग जाती है।।
बेगाना तोह लोग पलों में कर जाते हैं।।

मैं रेगिस्तान की धूल की तरह तरसता ही रह गया।।
वोह घटा बनकर आया और गरज कर निकल गया।।

शायद वोह रूठता ना मुझसे।।
जो मैं अपनी नज़रों में थोड़ा सा गिर गया होता।।

पैमाने ज़िन्दगी के एक से रखे हैं सबके लिए।।
दोस्त हो मेरे तोह आम क्या ख़ास क्या।।

एक बार जो आ जाएं रिश्तों में दरारें।।
फिर लाख मरहम लगा लो वोह बात नहीँ बनती।।

Saturday, August 13, 2016

सलीके ज़िन्दगी के

अपने दर्द को छिपाना सीख लिया है मैंने।।
बेवजह मुस्कुराना भी सीख लिया है मैंने।।
वक़्त के सांचे में पिघलना सीख गया हूँ।।
मुश्किल इन राहों पर चलना सीख गया हूँ।।

सुख नहीँ रहे तोह गम भी गुज़र जाएंगे।।
ये पल रोकर काट लेता हूँ फिर तोह तमाम उम्र मुस्कुरायेंगे।।
ज़िन्दगी की उलझनों में खुद को सुलझाना सीख लिया है मैंने।।
कोई समझे ना समझे खुद को समझाना सीख लिया है मैंने।।

अपनों से धोखे खाकर सम्भलना सीख गया हूँ।।
फिसलने का कोई खौफ नहीँ है चलना सीख गया हूँ।।
दुनियादारी के बोझ को उठाना सीख गया हूँ।।
रूठ जाए जो कोई मुझसे तोह मनाना सीख गया हूँ।।

दूसरों को तोड़कर खुदको जोड़ना नहीँ सीखा।।
बुरे हालातों में भी मुंह मोड़ना नहीँ सीखा।।
दोस्ती में कभी फरेब करना नहीँ सीखा।।
एक बार जो डट गया तोह डरना नहीँ सीखा।।

किसी की कमजोरी पर हंसना नहीँ सीखा।।
लाचारों और मजबूरों को डसना नहीँ सीखा।।
इनसानियत से पहले धर्म कभी आते ही नहीँ।।
सोच पर मर जाता हूँ जनाब चेहरे कभी लुभाते ही नहीँ।।

गिरगिट की तरह रंग बदलना नहीँ आया।।
पैसों के लिए रिश्तों को कुचलना नहीँ आया
कितना भी मझबूर हो जाऊं रिश्वतखोरी नहीँ करता।।
भूखा भी सो लेता हूँ पर कभी चोरी नहीँ करता।।

Wednesday, August 10, 2016

शायरी 2

तेरे अस्तित्व पर अक्सर मुझे शक होता है ऐ खुदा।।
जब भी किसी गरीब को भूख से मरते देखता हूँ।।😟

मुझे दफनाने से पहले मेरा दिल निकाल लेना।।
बरसों से इसमें बसता है कोई।।

पूरी तोह हो जाती शायद मेरी भी दुआएं।।।
पर उस तारे को टूटता देख कुछ माँगता भी तोह कैसे।।

तमाम उम्र जोड़ता रहा जो दूसरों को।।
किसी ने सहारा भी ना दिया जब वोह खुद बिखरा।।

हर रोज आकर छंट जाते हैं फिर।।
तेवर बादलों के भी आजकल सरकार जैसे हैं।।

मैं अभी तक ठीक से सिमटा भी नहीँ था।।।
और वोह फिर से आ गए हवाओं का झोंका बनकर।।।

ठिठुरा तोह बहुत था वोह उस बारिश वाली रात में।।
पर उसकी जमीन प्यासी और बच्चे भूखे थे।।😎

कितनी मुश्किलों से तिनका तिनका करके बनाया था उसने अपना आशियाना।।
उस हवा के झोंके ने पल भर में सब तवाह कर दिया।।

अब मेरी कलम भी मेरा साथ नहीँ देती।।
वोह जमाना और था जब मैं भी महफ़िलों को रुलाया करता था।।

वोह देश की खातिर लड़ते लड़ते भी आतंकवादी कहलाया।।
और लोग पलों में टोपी लगाकर ईमानदार हो गए।।😎😎

जी भर कर दीदार करले जब तक मैं हूँ।।
मुसाफिर हूँ ज़िन्दगी का ना जाने कल रहूँ ना रहूँ।।

कब तक रोकेंगे नीर को ये मिट्टी के बाँध।।
इक दिन तोह सैलाब आएगा जरूर।।

जरूरी नहीँ हर राह मन्ज़िल तक पहुंचे।।
कुछ किस्से अधूरे ही रहते हैं।।😑😑😑

ये कागजों की दुनिया है मैडम।।
यहाँ तुजुर्बे कौन देखता है।।

भूखे रहने से जो दुआएं कबूल होती।।
तोह शायद कोई रोटी की तलाश ना करता।।

हालात ज़िन्दगी के

चलते चलते सोचता हूँ लिखूं कुछ हालात ज़िन्दगी के।।
कुछ तेरे कुछ मेरे कुछ खयालात ज़िन्दगी के।।
हसरतें दिल में लाखों बसी हैं मेरे।।
बोलूँ जो मैं तोह कोई सुनता नहीँ।।
खाबों ख्यालों में मुझे कोई बुनता नहीँ।।
ना जाने कहाँ कहाँ उलझते हैं ये खाब ज़िन्दगी के।।
कुछ तेरे कुछ मेरे कुछ खयालात ज़िन्दगी के।।

रुकूँ तोह नज़र आते हैं काफिले ही काफिले मुझको।।
चलूं तोह संग मेरे कोई चलता नहीँ।।
खुद में ही उलझ गया हूँ कुछ इस तरह से।।
लाख कोशिशें करके भी सुलझता ही नहीँ।।
कभी कबार कलम से ही निकलते हैं अब ये जज़्बात ज़िन्दगी के।।
कुछ तेरे कुछ मेरे कुछ खयालात ज़िन्दगी के।।

बिकने को घूमता है यहाँ हर इंसान दुनिया का।।
कैसा ज़मीर है ये जो टिकता ही नहीँ।।
लड़खड़ा जाते हैं सभी यहाँ दुनिया की राह में।।
कोई बिरला ही शख्स हो जो फिसलता ही नहीँ।।
दुनिया में अच्छाइयों को कोई अपनाता भी तोह नहीँ।।
किस किस को दूँ मैं ये पैगाम ज़िन्दगी के।।
इक दिन मेरे साथ ही मर जायेंगे ये अरमान ज़िन्दगी के।।

इज़्ज़तों वाला श्रृंगार उतारकर जीते हैं लोग।।
इंसानियत और ज़मीर मारकर जीते हैं लोग।।
पैसे के लिए खुद को बेचकर।।
शराफतोँ वाले लिबास खरीदते हैं लोग।।
दिखावे के सँस्कारी अनेकों फिरते हैं।।
किस किस को सुनाऊं मैं हालात ज़िन्दगी के।।
कुछ तेरे कुछ मेरे कुछ खयालात ज़िन्दगी के।।

दहेज़ों और रिश्वतों के रिवाज़ चल रहे हैं।।
दिलों में नफरतों के साथ बच्चे पल रहे हैं।।
कौन सीखाता है अब जीने के सलीके।।
दुनिया में बदमाशियों के दौर चल रहे हैं।।
प्यार महोबत अब किताबों में ही रह गयी है।।
कैसे ब्यान करूँ ये संवाद ज़िन्दगी के।।
कुछ तेरे कुछ मेरे कुछ खयालात ज़िन्दगी के।।

Monday, July 11, 2016

मेरा रब है मुझसे रूठा सा।।

क्यों है ज़िन्दगी में ये सूखा सा।।
मेरा रब है मुझसे रूठा सा।।

रात को जब मैं सोया था,,
सुंदर खावों में खोया था।।
उस वक़्त जो मुझे उठा दिया,,
तोह फिर एक सपना टूटा था।।
मेरा रब है मुझसे रूठा सा।।

इक हवा का झोंक जो आया था,,
तेरी याद भी साथ में लाया था।।
तुझको जो मैंने देखा था,,
मेरा दिल ही मुझसे छूटा था।।
मेरा रब है मुझसे रूठा सा।।

दोस्तों के संग मैं रहता था,,
गम भी ख़ुशी से सेहता था।।
जिस वक़्त मुझे यूँ तन्हा किया।।
तब खुशियों को मेरी लूटा था।।
मेरा रब है मुझसे रूठा सा।।

ज़िन्दगी का साथ निभाता रहा,,
नए रिश्ते बनाता रहा।।
दुखों में जब मुझे छोड़ दिया।।
उस वक़्त ये एहसास हुआ,,
के रिश्ता ही वोह झूठा था।।
मेरा रब है मुझसे रूठा सा।।

क्यों है ज़िन्दगी में ये सूखा सा।।
मेरा रब है मुझसे रूठा सा।।

Thursday, June 2, 2016

शायर

आज वोह जो इतराते हैं अपनी खूबसूरती पर इतना।।।
कल जब कीमत इंसानियत की पता चलेगी तोह रोयेंगे।।।

सैंकड़ों छेद थे उस गरीब के घर की छत में।।।
मज़बूर इतना था की बारिशों की दुआ करता था।।

वोह तमाम उम्र बनाता रहा महल अमीरों के।।
ताकि कुछ पल चैन से जी सके अपनी झोंपड़ी में।।

कौन कहता है खुदा एक है।।
यहाँ तोह दिनों के हिसाब से भगवान बंटे हैं। 

अक्सर लोग बुरा मान जाते हैं मेरा।।
जब उनको उनके अंदाज़ में जवाब दिया मैंने।।

सोया नहीँ हूँ चैन से इक जमाने से ऐ खुदा।।
कुछ पल के लिए बचपन ही वापिस कर दे मैं माँ की गोद में सो लूँ।।

सोचो कितने गरीब होते होंगे वोह लोग।।
जो चन्द पैसों के लिए अपना ज़मीर बेच लेते हैं।।

ना जाने लोग दुश्मन क्यों बनाते हैं।।
बर्बाद होने के लिए तोह ये इश्क़ ही बहुत है।।

ऐसा नहीँ हमें इश्क़ करना नहीँ आता।।
पर ऐसा कोई शख्स ही नहीँ था जो हमको बर्बाद कर जाता।।

ज़रिये और भी बहुत हैं बर्बाद होने के।।
ना जाने क्यों हर शख्स इश्क़ चुनता है।।

ऐ खुदा ले चल मुझे कहीं दूर वीरानों में।
ज़िन्दगी के शोर में अब जिया नहीं जाता।

तनहा ही निकला था घर से अपनी पहचान ढूंढने।।
टुटा उस वक़्त जब कुछ अपने ही पहचानने से इनकार कर गए।।

किसी ने मुझ से पूछा के इतनी क्यों पीते हो।।
हमने कहा कम्बखत जो मज़ा मादहोशियों में है वोह होश में कहाँ।।

उनसे केह दो ना आएं मेरी महफ़िल में।।
कम्बखत उनके दिए दर्द सुनाकर ही रुलाउंगा उनको।।

ना जाने कैसे भुला देते हैं लोग तेरी खुदाई को या रब।।
हमसे तोह तेरा बनाया एक शख्स नहीँ भुलाया जाता।।

टूट रहा हूँ हर पल इस ज़िन्दगी के सफर में।।
कम्बखत कोई तोह समझे मुझे दुआओं की नहीँ सहारे की जरूरत है।।

अपनी यादों से केह दो कि मेरी गली से ना गुज़रा करें।।
कम्बखत जमाना हो गया है मुझे चैन की नींद सोये हुए।।

अक्सर ये महफिलें भी रो देती हैं।।।
जब जब तेरे दिए दर्द सुनाता हूँ मैं।।।

कोई जिस्म बेचता है, कोई ज़मीर बेचता है।।
ये पैसे की भूख है कि मिटती ही नहीँ।।

ज़माना हो गया अपनों से रूबरू हुए।।।
सोचता हूँ फिर से कोई गुनाह करूँ।।

वोह हर रोज टूटता है।।
ताकि अपनों को जोड़ सके।।

वोह खुद भूखा रह के कमाता है हर रोज।।
ताकि वाकी सबके लिए पूरा हो सके।।

वोह अब पत्नी के हाथ का खाना माँ को चखाता भी नहीँ।।
जिसको कभी माँ के हाथ के सिवा कहीं स्वाद नहीँ आता था।।

Monday, February 15, 2016

कहाँ है

खा गये हैं सब बेच कर  ज़मीर को।
बिकता नहीं कहीं जो वोह ईमान कहाँ है।

मंदिर मस्जिद हर जगह दीखते हैं मुझे।
कोई वोह जगह बताये मिलता भगभान जहाँ है।

रास नहीं आई मुझे मतलब की ये दुनिया।
कोई तोह बतायेे कि ये शमशान कहाँ है।

लूट लेते हैं सब कुर्सी पे बैठ कर।
जो देश की खातिर मिट जाए वोह अरमान कहाँ हैं।

बहुत मिलते हैं लोग मुझे चलते फिरते यहाँ।
बस कोई इतना बता दे मिलते ईनसान कहाँ हैं।

नफ़रतें ही देखी यहाँ हर दिल में मैंने।
जहाँ सब मिलजुल कर रहते थे वोह हिन्दुस्तान कहाँ है।

Friday, February 12, 2016

जरूरत है तुम्हारी।

यादों के सहारे वक़त गुज़र सकता है।
ज़िन्दगी गुज़ारने के लिये मुझे जरूरत है तुम्हारी।

कुछ दूर तोह मैं तनहा भी चल सकता हूँ।
ज़िन्दगी भर चलने के लिए मुझे जरूरत है तुम्हारी।

अजनबियों के साथ बात तोह करता हूँ मैं।
पर हाल-ऐ-दिल सुनाने के लिए मुझे जरूरत है तुम्हारी।

ख़ुशी में तोह सारी दुनिया साथ होती है।
लेकिन गम बांटने के लिए मुझे जरूरत है तुम्हारी।

तनहाइयों में अक्सर मैं गुनगुना लेता हूँ।
मगर प्यार के गीत गाने के लिए मुझे जरूरत है तुम्हारी।

© चन्द्र शेखर मनकोटिया

Monday, February 8, 2016

दिल की बात

जब से देखा है मैंने तुझको यारा।
तब से बहका सा हूँ दिलदारा।
गुम सुम गुम सुम सा रहता हूँ।
हाल-ऐ-दिल सबसे कहता हूँ।
तेरी यादों में खोया खोया।
कई कई रातें मैं ना सोया।
तू क्यों लगता है सबसे प्यारा।
दिल ये बहका सा है दिलदारा।
जबसे देखा है तुझको यारा।

तेरा क्या है मुझसे नाता।
तू ही क्यों है दिल को भाता।
अपना हाल तुझे मैं बताऊँ।
तुझ संग प्यार के गीत गुनगुनाऊं।
साथ मिल जाए मुझे तुम्हारा।
जबसे देखा है तुझको यारा।
दिल ये बेहका है दिलदारा।

रातों की नींद उड़ाई है तुमने।
दिन का चैन चुराया है तुमने।
पहले तोह मेरा हाल ऐसा ना था।
अभी कुछ दिनों से जादू चलाया है तुमने।
अब तेरे बिन मुश्किल है मेरा गुज़ारा।
दिल ये बेहका सा है दिलदारा।
जबसे देखा है तुझको यारा।

अब हर जगह दिखती तू ही तू है।
हवा में भी जैसे तेरी खुशबू है।
तेरे बिना मुश्किल है अब जीना मेरा।
तूने चलाया कैसा जादू है।
दे दे मुझको थोडा सहारा।
दिल ये बेहका सा है दिलदारा।

जबसे देखा है तुमको यारा।
दिल ये बेहका है दिलदारा।

चन्द्र शेखर मनकोटिया