Sunday, September 11, 2016

भगत सिंह

ओस वेल्ले लड़ना केड़ा सौखा सी।
निक्की उमरे मरना केड़ा सौखा सी।
भरी जवानी बिच ही जा के लड़ गया सी।
घर देयाँ नू रौंदा छड सूली चढ़ गया सी।

हवावां दा रुख भी ओहने मोड़ेया होणा।
कच्च दे नाल पथरां नू भी तोड़ेया होणा।
पूरा देश ओस दिन रोया होणा।
भारत माँ ने जद अपणे लाडले नू खोया होणा।

खौरे ओहदे ते की चढ़ी खुमारी सी।
लखां उते ओह कल्ला ही भारी सी।
अपनेया ने ही किती ओदों गद्दारी सी।
गौरेयां दे नाल ला ली ठगां यारी सी।

जदों हंस के आखिर नू सूली चड़ेया होणा।
कईयाँ दा अरमान नाल ही मरेया होणा।
यम भी हाथ लाण तों डरेया होणा।
खोरे ओहना ने ऐना होंसला किथों करेया होणा।

मजबूर गरीबाँ दा हाथ फड़दा क्यों नहीँ।
बुराईयाँ दे नाल हुण लड़दा क्यों नहीँ।
किथे डुब गया कुज करदा क्यों नहीँ।
भगत सिंह बरगा सूरज हुण चड़दा क्यों नहीँ।

पैसा

पैसा है अपना रंग तोह दिखायेगा ही।

ज़िन्दगी की राहों पे बेहका देता है।
ना चाहते भी गलतियां करवा देता है।
भीड़ में भी इक दिन दौड़ायेगा ही।
पैसा है अपना रंग तोह दिखायेगा ही।

अपनों को अपनों से लड़ा देता है।
दोस्तों से दुश्मन बना देता है।
माँ बाप को ठोकर मरवा देता है।
भाइयों को भाइयों से लड़वायेगा ही।
पैसा है अपना रंग तोह दिखायेगा ही।

बुराईयों की राह पे चलना ये सिखाये।
गलत आदतों को पलना ये सिखाये।
पल पल में ये हमको बहकाये।
गुरुर में इक दिन डुबायेगा ही।
पैसा है अपना रंग तोह दिखायेगा ही।

मज़बूरियों में गलत राहों पर चला देता है।
चोरी डकैती जैसे काम करवा देता है।
अपनों को दो निबाले खिलाने की खातिर।
सड़कों पर भीख तक मंगवाएगा ही।
पैसा है अपना रंग तोह दिखायेगा ही।

बेटियाँ

फूलों की तरह खिलखिलाती हैं।
खुशबू की तरह मेहकाती हैं।
परियों का रूप लेकर आती हैं।
सबकी किस्मत में नहीं होती,
किसी किसी घर को ही रोशनाती हैं बेटियां।

दुखों में साथ कभी न ये छोड़ती।
अपनों से कभी मुंह नहीं मोड़ती।
अकेले में बैठ कर चाहे घंटों रो लें।
सामने हर दुःख हंस के जर लेती हैं बेटियां।

न चाहते हुए भी चुप रहती हैं।
अपनों की जुदाई हंस कर सहती हैं।
कोई दाग ना आये बाप की पगड़ी पर,
बस चुपचाप पराये घर की और चल देती हैं बेटियां।

दूर जब जाना है, तोह रोना ही है।
दस्तूर है दुनिया का, ऐसा होना ही है।
खुद चाहे कितने भी बुरे हालातों से गुजरें,
मुसीबत में माँ बाप का साथ निभा जाती हैँ बेटियां।

बुढ़ापे में आकर ये सहारा बन जाएँ।
अपने हाथों से खाना ये खिलाएं।
बेटे चाहे ठोकर भी मार दें।
अपना फ़र्ज़ निभा जाती हैँ बेटियां।

Thursday, September 8, 2016

शायरी 4

खुद गिर गिर कर मुझे चलना सिखाया है।।
फिसलूं जो कभी तोह सम्भलना सिखाया है।।
बहुत हुनर वाला बनाया है मुझे मेरे पापा ने।।
कैसे भी हालात हों मुझे पलना सिखाया है।।

फिसलते देखे मैंने आज वोह चेहरों के नूर पर।।
वोह जो कल तक बात समझदारियों की करते थे।।

खामोश सी है इक अरसे से मेरी कलम।।
ज़िन्दगी बस इतने ही दर्द दिए थे क्या मुझे।।

आगोश में अपनी कोई समेटता ही नहीँ।।
कुछ इस तरह से वक़्त ने बिखेरा है मुझे।।

नसीबों के किस्से अब कैसे ब्यान करूँ।।
वोह उसको भी टटोलता है जो तुम फेंक आते हो।।

ज़िन्दगी में आये हो तोह थोड़ा अदब से चलना ऐ दोस्त।।
यहाँ कदम कदम पर सौदागर मिलेंगे खरीदने को तुमको।।

कमाल के ब्यापारी मिले ज़िन्दगी तेरे सफर में।।
कोई खुद को बेचता है तोह कोई बिक जाता है यहाँ।।

सब कहने की बातें हैं जनाब कि मेहनतें रंग लाती हैं।।
वोह धूप में उगाता है फिर भी गरीब है।।
और वोह ac में बेच कर भी अमीर हो गए।।

सीखा है मैंने।।

वोह भूखे को रोटी।।
वोह बेघर को घर।।
वोह कड़कती ठंड में कपड़ा।।
वोह तपती धूप में छाया।।
और वोह गरीबी में माया।।
ना जाने कितनी दुआएं मांगी हैं मैंने।।

वोह खिलखिलाते फूल।।
वोह लहलहाते खेत।।
वोह नाचते मोर।।
वोह गाती हुयी कोयलें।।
वोह टिमटिमाते हुए तारे।।
और बारिशों के नजारे।।
ना जाने कितनी फिजायें देखी हैं मैंने।।

वोह गरजते बादल।।
वोह बहती हुयी नदियाँ।।
वोह कलकलाते झरने।।
वोह अचल अडिग पहाड़।।
वोह घने बृक्ष और जाड़।।
और वोह ठंडी हवाएं महसूस की हैं मैंने।।

अपनों से दूर जाना।।
वोह रूठते को मनाना।।
तनहाइयों में रोना।।
रात रात भर ना सोना।।
वोह आसमान को निहारना।।
खावों में तुझको पुकारना।।
और ना जाने कितनी सजाएं पायी हैं मैंने।।

दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

बड़ा लगदा है छैल तेरा हसना।।
गल दिले आली लगा तिज्जो दसना।।
मिंजो लगदी तू बाँकी बड़ी गोरिये।।
दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

तँग काला सूट जालु भी पाँदी तू।।
जान कडी लैंदी लके मटकांदी तू।।
कियाँ दसां तिज्जो मेरी कमजोरिये।।
दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

हाल दिले आला कियाँ तिज्जो दसां हुण।।
कल्ला बेयी तिज्जो याद करी हसां हुण।।
तार दिले आले कियाँ भला जोड़िये।।
दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

तेरी याद मिंजो हर पल आंदी हुण।।
तू राती सुपनेयाँ च आयी करी सतान्दी हुण
दिल कियाँ तेरे दिल कन्ने जोड़िये।।
कुछ तां दस हुण मेरी कमजोरिये।।
दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

तिज्जो अपनी बनाना हुण चांदा मैं।।
तेरे कन्ने उम्र बिताना हुण चांदा मैं।।
मेरे मापेयां जो बनायी लै तू अपने सोरिये।।
दिल लुट्टया तू पहाड़ां दिए छोरिये।।

© चन्द्र शेखर मनकोटिया