Thursday, June 2, 2016

शायर

आज वोह जो इतराते हैं अपनी खूबसूरती पर इतना।।।
कल जब कीमत इंसानियत की पता चलेगी तोह रोयेंगे।।।

सैंकड़ों छेद थे उस गरीब के घर की छत में।।।
मज़बूर इतना था की बारिशों की दुआ करता था।।

वोह तमाम उम्र बनाता रहा महल अमीरों के।।
ताकि कुछ पल चैन से जी सके अपनी झोंपड़ी में।।

कौन कहता है खुदा एक है।।
यहाँ तोह दिनों के हिसाब से भगवान बंटे हैं। 

अक्सर लोग बुरा मान जाते हैं मेरा।।
जब उनको उनके अंदाज़ में जवाब दिया मैंने।।

सोया नहीँ हूँ चैन से इक जमाने से ऐ खुदा।।
कुछ पल के लिए बचपन ही वापिस कर दे मैं माँ की गोद में सो लूँ।।

सोचो कितने गरीब होते होंगे वोह लोग।।
जो चन्द पैसों के लिए अपना ज़मीर बेच लेते हैं।।

ना जाने लोग दुश्मन क्यों बनाते हैं।।
बर्बाद होने के लिए तोह ये इश्क़ ही बहुत है।।

ऐसा नहीँ हमें इश्क़ करना नहीँ आता।।
पर ऐसा कोई शख्स ही नहीँ था जो हमको बर्बाद कर जाता।।

ज़रिये और भी बहुत हैं बर्बाद होने के।।
ना जाने क्यों हर शख्स इश्क़ चुनता है।।

ऐ खुदा ले चल मुझे कहीं दूर वीरानों में।
ज़िन्दगी के शोर में अब जिया नहीं जाता।

तनहा ही निकला था घर से अपनी पहचान ढूंढने।।
टुटा उस वक़्त जब कुछ अपने ही पहचानने से इनकार कर गए।।

किसी ने मुझ से पूछा के इतनी क्यों पीते हो।।
हमने कहा कम्बखत जो मज़ा मादहोशियों में है वोह होश में कहाँ।।

उनसे केह दो ना आएं मेरी महफ़िल में।।
कम्बखत उनके दिए दर्द सुनाकर ही रुलाउंगा उनको।।

ना जाने कैसे भुला देते हैं लोग तेरी खुदाई को या रब।।
हमसे तोह तेरा बनाया एक शख्स नहीँ भुलाया जाता।।

टूट रहा हूँ हर पल इस ज़िन्दगी के सफर में।।
कम्बखत कोई तोह समझे मुझे दुआओं की नहीँ सहारे की जरूरत है।।

अपनी यादों से केह दो कि मेरी गली से ना गुज़रा करें।।
कम्बखत जमाना हो गया है मुझे चैन की नींद सोये हुए।।

अक्सर ये महफिलें भी रो देती हैं।।।
जब जब तेरे दिए दर्द सुनाता हूँ मैं।।।

कोई जिस्म बेचता है, कोई ज़मीर बेचता है।।
ये पैसे की भूख है कि मिटती ही नहीँ।।

ज़माना हो गया अपनों से रूबरू हुए।।।
सोचता हूँ फिर से कोई गुनाह करूँ।।

वोह हर रोज टूटता है।।
ताकि अपनों को जोड़ सके।।

वोह खुद भूखा रह के कमाता है हर रोज।।
ताकि वाकी सबके लिए पूरा हो सके।।

वोह अब पत्नी के हाथ का खाना माँ को चखाता भी नहीँ।।
जिसको कभी माँ के हाथ के सिवा कहीं स्वाद नहीँ आता था।।