कमाल के हैं इंसान यहाँ दुनिया में।।
जिस पेड़ की छाँव में बैठ जाता था धूप में थक कर।।
उसी पेड़ को आज जलाता है तपने के लिए।।
मुझको आज भी वोही पसन्द है।।
बस उसका ही नज़रिया बदल गया।।
वक़्त के साथ हालात तोह बदल गए।।
एक मैं नहीँ बदला एक मेरी पसन्द नहीँ बदली।।
यूँ ना सताया कर तू बात बात पर ऐ ज़िन्दगी।।
मैं जो रूठा तोह फिर ना मानूँगा कभी।।
टूट जाना तोह मुक्कदर था उस शाख का।।
आँधियाँ तोह महज एक जरिया बन गयीं।।
छोड़ क्या बात करनी इंसानियत की ऐ दोस्त।।
यहाँ मजहबों के हिसाब से नज़रिये बदल जाते हैं।।
पतझड़ों में तोह आखिर टूटना ही था।।
जो आंधियों में बिखरा तोह बुरा क्यों मानू।।
अक्सर टूट जाते हैं वोह लोग।।
जो दूसरों को बिखरने नहीँ देते।।
उम्मीद है नई रुत आएगी बहारों के साथ।।
वैसे तोह समा ये भी हसीन है।।
हमेशा तोह नहीँ रहते बगानों में फूल।।
जो पतझड़ आये तोह साथ चलना मेरे।।
घटा बनकर कभी तोह छाओ रे बदरा।।
कहीं से उम्मीद कोई जगाओ रे बदरा।।
पूरे जहाँ की नफ़रतें मिट जाएं जिस से,
प्यार की ऐसी बूंदें बरसाओ रे बदरा।।
शायद कबूल तोह हो जाती मेरी भी दुआएं।।
बस टूटते तारों को देख कर कुछ माँगा ही ना गया।।
बेहक जाता हूँ ज़िन्दगी की राहों में बार बार।।
उम्र बीत गयी पर जीने के सलीके नहीँ आये।।
दिलों से पेहचान हो सबकी तब बात बने।।
रंग तोह अक्सर बदल लेते हैं लोग।।
अपना बनाने में उम्र लग जाती है।।
बेगाना तोह लोग पलों में कर जाते हैं।।
मैं रेगिस्तान की धूल की तरह तरसता ही रह गया।।
वोह घटा बनकर आया और गरज कर निकल गया।।
शायद वोह रूठता ना मुझसे।।
जो मैं अपनी नज़रों में थोड़ा सा गिर गया होता।।
पैमाने ज़िन्दगी के एक से रखे हैं सबके लिए।।
दोस्त हो मेरे तोह आम क्या ख़ास क्या।।
एक बार जो आ जाएं रिश्तों में दरारें।।
फिर लाख मरहम लगा लो वोह बात नहीँ बनती।।