Sunday, September 11, 2016

भगत सिंह

ओस वेल्ले लड़ना केड़ा सौखा सी।
निक्की उमरे मरना केड़ा सौखा सी।
भरी जवानी बिच ही जा के लड़ गया सी।
घर देयाँ नू रौंदा छड सूली चढ़ गया सी।

हवावां दा रुख भी ओहने मोड़ेया होणा।
कच्च दे नाल पथरां नू भी तोड़ेया होणा।
पूरा देश ओस दिन रोया होणा।
भारत माँ ने जद अपणे लाडले नू खोया होणा।

खौरे ओहदे ते की चढ़ी खुमारी सी।
लखां उते ओह कल्ला ही भारी सी।
अपनेया ने ही किती ओदों गद्दारी सी।
गौरेयां दे नाल ला ली ठगां यारी सी।

जदों हंस के आखिर नू सूली चड़ेया होणा।
कईयाँ दा अरमान नाल ही मरेया होणा।
यम भी हाथ लाण तों डरेया होणा।
खोरे ओहना ने ऐना होंसला किथों करेया होणा।

मजबूर गरीबाँ दा हाथ फड़दा क्यों नहीँ।
बुराईयाँ दे नाल हुण लड़दा क्यों नहीँ।
किथे डुब गया कुज करदा क्यों नहीँ।
भगत सिंह बरगा सूरज हुण चड़दा क्यों नहीँ।

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