Thursday, September 8, 2016

शायरी 4

खुद गिर गिर कर मुझे चलना सिखाया है।।
फिसलूं जो कभी तोह सम्भलना सिखाया है।।
बहुत हुनर वाला बनाया है मुझे मेरे पापा ने।।
कैसे भी हालात हों मुझे पलना सिखाया है।।

फिसलते देखे मैंने आज वोह चेहरों के नूर पर।।
वोह जो कल तक बात समझदारियों की करते थे।।

खामोश सी है इक अरसे से मेरी कलम।।
ज़िन्दगी बस इतने ही दर्द दिए थे क्या मुझे।।

आगोश में अपनी कोई समेटता ही नहीँ।।
कुछ इस तरह से वक़्त ने बिखेरा है मुझे।।

नसीबों के किस्से अब कैसे ब्यान करूँ।।
वोह उसको भी टटोलता है जो तुम फेंक आते हो।।

ज़िन्दगी में आये हो तोह थोड़ा अदब से चलना ऐ दोस्त।।
यहाँ कदम कदम पर सौदागर मिलेंगे खरीदने को तुमको।।

कमाल के ब्यापारी मिले ज़िन्दगी तेरे सफर में।।
कोई खुद को बेचता है तोह कोई बिक जाता है यहाँ।।

सब कहने की बातें हैं जनाब कि मेहनतें रंग लाती हैं।।
वोह धूप में उगाता है फिर भी गरीब है।।
और वोह ac में बेच कर भी अमीर हो गए।।

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